भारत की हाइड्रोजन ट्रेन ने भरी रफ्तार, टेक्नोलॉजी में चीन को छोड़ा पीछे

भारत में शून्य उत्सर्जन वाली हाइड्रोजन ट्रेन का ट्रायल शुरू हो चुका है। इस बारे में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि यह कदम भारत को वैश्विक ग्रीन क्रांति के नक्शे पर मजबूत पहचान दिलाएगा और 2070 तक नेट-जीरो कार्बन एमिशन के लक्ष्य की दिशा में एक अहम उपलब्धि साबित होगा।

Hydrogen Train

Hydrogen Train : भारत ने पर्यावरण अनुकूल परिवहन के क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। देश में पहली बार शून्य-उत्सर्जन तकनीक वाली हाइड्रोजन ट्रेन का परीक्षण शुरू हो गया है, और यही नहीं—भारत ने इस तकनीक के मामले में चीन तक को पीछे छोड़ दिया है। दावा किया जा रहा है कि भारतीय रेलवे ने दुनिया का सबसे ज़्यादा हॉर्स पावर वाला हाइड्रोजन इंजन तैयार कर लिया है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्वीट कर जानकारी दी कि देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन जल्द ही पटरी पर दौड़ने को तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि यह पहल भारत को वैश्विक हरित क्रांति के मानचित्र पर मजबूती से स्थापित करेगी और 2070 तक के नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम होगा।

जर्मनी इस रेस में सबसे आगे

हाइड्रोजन ट्रेनों की बात करें तो जर्मनी इस रेस में सबसे आगे रहा है, जिसने सितंबर 2022 में इस तकनीक की शुरुआत की थी। उसके बाद फ्रांस, स्वीडन और चीन ने भी इस दिशा में प्रगति की। अब भारत इन गिने-चुने देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, लेकिन एक अलग पहचान के साथ। भारत द्वारा तैयार किया गया इंजन तकनीकी क्षमता और हॉर्स पावर के मामले में सबसे ताकतवर है। जहां अन्य देशों की ट्रेनों में 500 से 600 HP के इंजन हैं, वहीं भारत की ट्रेन 1,200 HP की ताकत से लैस है।

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भारत की हाइड्रोजन ट्रेन 1,000 से अधिक यात्रियों को एक साथ ले जाने में सक्षम है और एक बार ईंधन भरने पर यह 1,200 किलोमीटर की दूरी तय कर सकती है। इसकी टॉप स्पीड 160 किमी/घंटा है और यह केवल 15 मिनट में पूरी तरह से रिफ्यूल हो जाती है। वहीं चीन की CINOVA H2 नामक हाई-स्पीड हाइड्रोजन ट्रेन, जिसे बर्लिन में इनोट्रांस 2024 मेले में पेश किया गया था, अधिकतम 200 किमी/घंटा की रफ्तार से चल सकती है, लेकिन भारत का इंजन पैसेंजर लोड, एफिशिएंसी और हॉर्स पावर के मामले में ज्यादा बेहतर साबित हो रहा है।

पहला संचालन हरियाणा में

देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन हरियाणा के जींद और सोनीपत के बीच चलाई जाएगी। यह मार्ग न केवल दूरी बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर के हिसाब से भी इस तकनीक के ट्रायल के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। यहां ऑसीलेशन ट्रायल के तहत ट्रेन में यात्रियों जितना ही वजन लादकर उसकी परफॉर्मेंस की जांच की जाएगी। इस ट्रायल के लिए प्लास्टिक के ड्रम में मेटल पाउडर भरकर 50-50 किलो के कृत्रिम भार तैयार किए गए हैं।

क्या है “Hydrogen for Heritage”योजना?

यह परियोजना केवल एक शुरुआत है। भारतीय रेलवे “हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज” नामक विशेष कार्यक्रम के तहत देश के पर्यावरण-संवेदनशील और दर्शनीय पर्यटन रूट्स पर भी हाइड्रोजन ट्रेनों को उतारने की योजना पर काम कर रहा है। शिमला-कालका, ऊटी और दार्जिलिंग जैसे हेरिटेज मार्गों पर इन ट्रेनों को चलाया जाएगा। कुल 35 हाइड्रोजन ट्रेनें बनाने की योजना है, जिनमें से हर एक पर करीब 80 करोड़ रुपये की लागत आएगी, जबकि रूट-लेवल रीफ्यूलिंग और मेंटेनेंस सुविधाओं के लिए अतिरिक्त 70 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है।

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हाइड्रोजन से चलने वाली ये ट्रेनें केवल जलवाष्प उत्सर्जित करती हैं, जिससे ये डीज़ल इंजन वाली पारंपरिक ट्रेनों की तुलना में कहीं अधिक पर्यावरण-मित्र साबित होती हैं। भारत का यह कदम न केवल प्रदूषण कम करने में मदद करेगा, बल्कि यह देश को हाइड्रोजन-आधारित ट्रांसपोर्ट टेक्नोलॉजी में वैश्विक अग्रणी बनने की दिशा में भी एक निर्णायक प्रयास माना जा रहा है।

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