बागपत: यूपी के बागपत जिले को यू तो महाभारत काल की उग्रता के मापदंडों से मापा जाता है। पांड़वों द्वारा मांगे गए पांच गांवों में एक बागपत (व्यागपरस्थ) भी था। मेरठ से उठी 1857 की क्रांति में यहां के शूरवीरों ने अपनी ताकत का अहसास अंग्रेजों को कराया था। बाबा शाहमल का नाम यहां के लोगों की जुबान पर रहता है।
बागपत लंबे समय से सत्ता विरोधी नेताओं को जीत दर्ज कराने का दंश झेलता आया है। यूपी में सत्ता अगर सपा की रही तो यहां पर नेता बसपा और रालोद के रहे। पहली बार यहां के नेता सत्ता पक्ष के हुए है। बागपत में तीन विधानसभा सीट बागपत, बड़ौत और छपरौली है। छपरौली सीट अधिकांश रालोद के कब्जे में ही रही। जबकि बड़ौत और बागपत सीट ने अलग-अलग पार्टी नेताओं को यहां से मौका दिया।
बागपत- यह विधानसभा सीट उस वक्त अस्तित्व में आयी जब खेकड़ा विधानसभा सीट का 2008 में परिसीमन किया गया। इस बार यहां से भाजपा ने योगेश धामा, सपा-रालोद गठबंधन ने अहमद हमीद, कांग्रेस ने अनिल देव त्यागी और बसपा ने अरुण कसाना को टिकट दिया है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बागपत सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। बीजेपी उम्मीदवार योगेश धामा ने बहुजन समाज पार्टी के अहमद हमीद 31360 मतों से मात दी थी। 2012 में इस सीट से बसपा से हेमलता चौधरी विजयी हुई थी। बागपत विधानसभा में लगभग 3 लाख 75 हजार मतदाता हैं। जिसमें मुस्लिम 73 हजार, जाट 45 हजार, दलित 29 हजार, यादव 24 हजार, गुर्जर 22 हजार, ब्राह्मण 20 हजार, त्यागी 13 हजार, ठाकुर 9 हजार है। यहां गुर्जर, त्यागी, ब्राह्मण व अन्य जातियां अहम भूमिका निभाती है।
इस सीट पर विकास का मुद्दा और गन्ना की सही कीमत व समय पर भुगतान सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है
छपरौली- इस विधानसभा में लगभग 3 लाख 75 हजार मतदाता हैं। यह जाट बहुल सीट है, इसी सीट से आरएलडी ने अपना वजूद तय किया। यह सीट आरएलडी का गढ़ कही जाती है। इसी सीट से स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह ने देश के प्रधानमंत्री पद तक का सफर तय किया था। 2022 के चुनावों में भाजपा ने सहेंद्र सिंह रमाला, सपा-रालोद गठबंधन ने अजय कुमार, कांग्रेस ने यूनुस चौधरी और बसपा ने शाहीन चौधरी को टिकट दिया है। 2017 में यह सीट बीजेपी के सहेंद्र सिंह रमाला के कब्जे में चली गयी। तो 2012 में यहां आरएलडी के वीरपाल राठी ने बाजी मारी। लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी की हार के बाद बागपत से आरएलडी का गढ खत्म होता नजर आ रहा है। यहां जाट वोट बैंक बिखर गया है।
छपरौली विधानसभा सीट पर जाट 1 लाख 30 हजार, मुस्लिम 60 हजार, कश्यप 25 हजार, दलित 20 हजार, गुर्जर 15 हजार है। यहां किसान आंदोलन, महंगी बिजली दम तोड़ता रिम धुरा उद्योग प्रमुख समस्याएं है।
बड़ौत– यह सीट भी जाट बाहुल्य सीट है। इस बार भाजपा ने कृष्णपाल सिंह मलिक, सपा-रालोद गठबंधन ने जयवीर सिंह तोमर, कांग्रेस ने राहुल कश्यप और बसपा ने अंकित शर्मा को उतारा है। 2017 में भाजपा से कृष्णपाल मलिक यहां से विधायक बने और 2012 के चुनाव में बसपा से लोकेश दीक्षित यहां विधायक बने। यह सीट काफी लंबे समय तक रालोद के कब्जे में रही। जिसका मुख्य कारण यहां पर जाट बाहुल्य क्षेत्र था। लेकिन मोदी-योगी लहर में बागपत का तख्ता पलट हुआ और जाट वोट बैंक बिखर गया। मुजफ्फरनगर दंगों ने यहां के हालात ही बदल दिए।
बड़ौत विधानसभा में लगभग 3 लाख 75 हजार मतदाता हैं । जिसमें जाट 80 हजार, मुस्लिम 45 हजार, कश्यप 30 हजार, दलित 25 हजार, वैश्य 18 हजार, गुर्जर 18 हजार, राजपूत 12 हजार है। बागपत जिले में तीन चीनी मिले हैं। यहां का प्रमुख मुद्दा गन्ना और सड़कों का विकास रहा है।